Thursday 18 April 2013

होली की कविता

तुम्हारे रंग में यूँ तो बहुत पहले रंग हूँ मैं ,
मगर फिर से नया रंग डाल दो इस बार होली में ,
कटोरे नयन के भर भर उड़ेलो जी करे जितना ,
ये बंधन प्यार के कस कर समेटो जी करे जितना,
तुम्हारे रंग में यूँ तो बहुत पहले रंग हूँ मैं ,
मगर फिर से नया रंग डाल दो इस बार होली में ,
तुम्हारा रंग मेरे अंग के ही संग खिलता है,
जिधर देखूं उधर तुम या तुम्हारा रंग मिलता है,
तुम्हारी चुनरिया का रंग भी कैसे निखर आया,
के मेरे स्वपन सुंदर हो गये साकार होली में,
ये पुडिया रंग की ही प्यार की सौगात कर दो तुम
मेरे जीवन में अपने प्यार का रंग भर दो तुम,
रंगे हाथो  मुझे  रंग  दो  नहीं  इनकार  होली  में
तुम्हारे रंग  में  यूँ   तो  बहुत  पहले  रंग  हूँ   मैं ,
मगर  फिर  से  नया  रंग  डाल दो  इस  बार  होली

1 comment:

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